साहित्यकार निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) को पढ़ना ऐसे है मानो आपने उन्हें अपनी उंगली थमा दी है, जिसे पकड़कर वह आपको संवेदनाओं की सुदूर, गहराती दुनिया में लिए चले जा रहे हैं. न तो उंगली छुड़ा पाना आसान, न भाग कर लौट पाना. लेकिन कौन तो मूरख होगा जो निर्मल की लेखनी के दर्द और सुख के खूबसूरत मायाजाल से बाहर निकलना चाहेगा, उंगली झटककर लौटना चाहेगा! आज उनकी बात इसलिए क्योंकि आज 3 अप्रैल को उनका जन्मदिन है.
निर्मल वर्मा हिन्दी साहित्य के ऐसे चितेरे हैं जिन्हें जिन्होंने भी पढ़ा, वे उनमें डूबते उतराते रहे. उनकी कहानियां, उनके उपन्यास अपनी अनेकानेक पंक्तियों में जैसे कविता गढ़ते लगते हैं. भावनाओं को कलात्मकता से प्रतिबिंबित करने वाले निर्मल वर्मा माहौल, संबंध और प्रेम को अपने मूल रूप में जैसे उकेरते गए, वह साहित्य और लेखन को नई ऊंचाइयों पर ले गया. 2005 में 25 अक्टूबर को उन्होंने देह छोड़ी.
निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) जन्मदिन पर विशेष : ‘हमारा बड़प्पन सब कोई देखते हैं, हमारी शर्म केवल हम देख पाते हैं’