Zahid Hussain (born 8 February 1940), better known by the pen name Wasim Barelvi, is an Indian Urdu-language poet. He was born in Bareilly, Uttar Pradesh. His ghazals, many sung by Jagjit Singh, are very popular He has been awarded with the “Firaq Gorakhpuri International Award”, the Kalidas gold medal (by the Haryana government, in recognition for his services in the field of Urdu poetry); the Begum Akhtar Kala Dharmi award; and the Naseem-e-Urdu award. Barelvi is Vice Chairman of the National Council for Promotion of Urdu Language (NCPUL). He has also performed at Culrav 2012 (the cultural event of NIT Allahabad). He is also Member of Legislative Council of Uttar Pradesh since 2016.

वसीम बरेलवी उर्दू के लोकप्रिय शायर हैं और आम से लेकर ख़ास तक सभी उनके शेर का सहारा अपनी बात कहने के लिए लेते हैं। पेश हैं कुछ ऐसे ही चुनिंदा शेर

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

मशहूर शायर वसीम बरेलवी के 20 बड़े शेर

ग़म और होता सुन के 

ग़म और होता सुन के गर आते न वो ‘वसीम’
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

जो मुझ में तुझ में

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो

किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
मेरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है

किसी से कोई भी उम्मीद

किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
तो ये रिश्ता निभाना किस क़दर आसान हो जाए

कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता

उसी को जीने का हक़ है

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी

दुख अपना अगर

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है

तुझे पाने की कोशिश में

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा

हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले

रात तो वक़्त की पाबंद है

रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएग
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है

वैसे तो इक आँसू ही

वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

अपने अंदाज़ का अकेला था

अपने अंदाज़ का अकेला था
इसलिए मैं बड़ा अकेला था

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें