नीलेश रघुवंशी= भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित, नवें दशक की महत्त्वपूर्ण कवयित्री। ‘एक क़स्बे के नोट्स’ शीर्षक उपन्यास के लिए उल्लेखनीय।
“बुढ़ापे में पिता”
पिता पर बुढ़ापा अच्छा नहीं लगता
हर किसी के आगे हाथ जोड़ देना
अरे साहब, अरे साहब कहकर बातें करना
जिससे अच्छे से बात करना चाहिए, झिड़कना उसे खामखाँ
बेमतलब के आदमी से घंटों बातें करना
खाँसते हुए ज़िद पर अड़ेंगे, हर एक काम ख़ुद करेंगे
वश का नहीं जो उनके, करेंगे उसे ही सबसे पहले
तिस पर लोगों का यह कहना—
”अरे भई बुढ़ापा है, उलझो मत”, बिल्कुल ही अच्छा नहीं लगता
पिता बुढ़ापे में अच्छे नहीं लगते
या शायद
अच्छा नहीं लगता बुढ़ापा पिता पर। – नीलेश रघुवंशी