साहित्यकार निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) को पढ़ना ऐसे है मानो आपने उन्हें अपनी उंगली थमा दी है, जिसे पकड़कर वह आपको संवेदनाओं की सुदूर, गहराती दुनिया में लिए चले जा रहे हैं. न तो उंगली छुड़ा पाना आसान, न भाग कर लौट पाना. लेकिन कौन तो मूरख होगा जो निर्मल की लेखनी के दर्द और सुख के खूबसूरत मायाजाल से बाहर निकलना चाहेगा, उंगली झटककर लौटना चाहेगा! आज उनकी बात इसलिए क्योंकि आज 3 अप्रैल को उनका जन्मदिन है.

निर्मल वर्मा हिन्दी साहित्य के ऐसे चितेरे हैं जिन्हें जिन्होंने भी पढ़ा, वे उनमें डूबते उतराते रहे. उनकी कहानियां, उनके उपन्यास अपनी अनेकानेक पंक्तियों में जैसे कविता गढ़ते लगते हैं. भावनाओं को कलात्मकता से प्रतिबिंबित करने वाले निर्मल वर्मा माहौल, संबंध और प्रेम को अपने मूल रूप में जैसे उकेरते गए, वह साहित्य और लेखन को नई ऊंचाइयों पर ले गया. 2005 में 25 अक्टूबर को उन्होंने देह छोड़ी.

निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) जन्मदिन पर विशेष : ‘हमारा बड़प्पन सब कोई देखते हैं, हमारी शर्म केवल हम देख पाते हैं’

इस शख्स ने कलम से दिखाया जिंदगी जीने का अलग नजरिया
निर्मल वर्मा जिनके विचारों , संवेदना और भाषा शैली पर लगातार शोध होते रहेंगे

निर्मल वर्मा जन्मदिन विशेष: ‘जब हम बूढ़े हो जाते हैं तो समय ठहर जाता है और मृत्यु हमारे पीछे भागती है’
वे दिन से Quotes
 
तुम मदद कर सकते हो, लेकिन उतनी नहीं जितनी दूसरों को जरूरत है और यदि जरूरत के मुताबिक मदद नहीं कर सको तो चाहे कितनी भी मदद क्यों न करो, उससे बनता कुछ भी नहीं.
 
नहीं, सुख होता नहीं, सिर्फ याद किया जा सकता है.. अपनी यातना में.. जब तुम्हें अचानक पता चलता है, यह जून है, वह जनवरी था.
 
जिन लोगों के सामने दूसरा रास्ता खुला रहता है, वे शायद ज्यादा सुखी नहीं हो पाते.
 
तुम बहुत से दरवाजों को खटखटाते हो, खोलते हो और उनके परे कुछ नहीं होता, फिर अकस्मात् कोई तुम्हारा हाथ खींच लेता है, उस दरवाजे के भीतर जिसे तुमने खटखटाया नहीं था. वह तुम्हें पकड़ लेता है और तुम उसे छोड़ नहीं सकते.
 
परिन्दे  से Quotes
 
हमारा बड़प्पन सब कोई देखते हैं, हमारी शर्म केवल हम देख पाते हैं
 
अब वैसा दर्द नहीं होता, सिर्फ उसको याद करती है, जो पहले कभी होता था – तब उसे अपने पर ग्लानि होती है I वह फिर जान-बूझकर उस घाव को कुरेदती है, जो भरता जा रहा है, खुद-ब-खुद उसकी कोशिशों के बावजूद भरता जा रहा है.
 
 
उनके बारे में कुछ खास बातें, एक नजर में…
 
1999 में देश के सबसे बड़े साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए.
विश्व की 9 प्रख्यात कृतियों का हिन्दी अनुवाद किया था
उनके हिस्से में हैं- 5 उपन्यास, 8 शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन, 9 निबंध व नॉन- फिक्शन
उपन्यास – अंतिम अरण्य, रात का रिपोर्टर, एक चिथड़ा सुख, लाल टीन की छत, वे दिन.
कहानी संग्रह – परिंदे, कौवे और काला पानी, सूखा तथा अन्य कहानियाँ, बीच बहस में, जलती झाड़ी, पिछली गर्मियों में.
संस्मरण यात्रा वृत्तांत – धुंध से उठती धुन, चीड़ों पर चांदनी
नाटक – तीन एकांत
निबंध – भारत और यूरोप, प्रतिभूति के क्षेत्र, शताब्दी के ढलते वर्षों से, कला का जोखिम, शब्द और स्मृति, ढलान से उतरते हुए.
 
निर्मल वर्मा की कृतियों में ऐसा बहुत कुछ है जिसका जिक्र किया जाना मौजू भी है लेकिन बेहतर होगा कि आप खुद उनकी कहानियों और उपन्यासों का आनंद लें. क्योंकि, जिन्दगी को जीना एक बात है और जिन्दगी को कागज पर उकेरना एक दूसरी बात है. इस दूसरी कला को निर्मल की नजर से देखने की एक कोशिश अवश्य की जानी चाहिए यदि आपने उन्हें नहीं पढ़ा हो तो अब ज़रूर ढून्ढ के पढ़िए
 
(विभिन्न एजेंसियों से जुटाई गई कुछ सूचनाएं)